आगरा के साहित्यकार अमृतलाल चतुर्वेदी के पड़ोस में एक अनपढ़ आदमी रहता था
जो गाहे बगाहे अपने परिवार के पत्रों को पढ़वाने के लिए उनके पास आता रहता था
उस अनपढ़ के परिवार का एक सदस्य झांसी में रहता था
और थोड़ा पढ़ा लिखा था उसे तुकबंदी की भयंकर आदत थी पत्र भी वो तुकबंदी में ही लिखता था
एक बार उसी आदमी का लिखा पोस्टकार्ड लेकर वो अनपढ़ आदमी पत्र पढ़वाने चतुर्वेदी जी के पास पहुंचा
पत्र में दोहा लिखा था
“सिद्धि सी झांसी लिखी राम राम प्रिय भ्रात।।
अत्र कुंशल त्रातास्तु, भैया मरी गए रात।।”😜😜😜